सतरंगी जीवन #कहानीकार प्रतियोगिता लेखनी कहानी -16-Aug-2023
भाग-१३
कांधे पर कांँवर लिए नंगे पैर शांति देवी और बुद्धनी 'जै भोले नाथ' का नाम जपते सुल्तान गंज से गंगा नदी से जल भर कर बाबा धाम जा रही थी।वो राँची से सुल्तान गंज अपने पतियों के साथ पहुंची फिर वहां से 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा वो दोनों नंगे पैर कर रहीं थी।
बुद्धनी ने अपने गले में सफेद क्रिस्टल के मोतियों में क्रॉस पहना ही हुआ था जो केसरिया रंग की सूती धोती पर लहराता ... मानों कह रहा हो ईश्वर एक है। माथे पर केसरिया चुनरी लपेटे.. पूरे जोश में लम्बे-लम्बे कदम भरती हर साँस भोले नाथ के नाम कर रही थी।
साथ में चल रहे काँवरियों की नजर उसके गले पर लटकते क्रॉस पर अटक रही थी। शांति देवी उसके साथ उसकी रक्षक बनी 'ऊँ नमः शिवाय' का जाप करती चल रही थी।
रास्ता बहुत दुर्गम था, सुई की तरह राह में कंकर चुभ रहे थे और हर चुभते कंकर से जोश और बढ़ता जाता। भोलेनाथ का जयकारा बोल बम से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। भक्ति की लहर कण कण में नजर आ रही थी। पेड़ों की डालियां भी झूम झूम कर बोल बम कह रही थी।
आसान नहीं थी यहां तक पहुंचने की कहानी , दोनों ने अपने परिवार वालों को समझाने की बहुत कोशिश की। शैलेन्द्र और फूलचंद तो अपनी पत्नियों की खुशी के लिए कुछ भी कर सकते थे पर समाज का डर तो उन्हें भी सताता था। दोनों परिवारों को अगर उनके समाज वाले कल को उन्हें बहिष्कृत कर देंगे तो क्या होगा ?? यह डर उनकी रातों की नींद और दिन का चैन लूट रहा था।
शैलेन्द्र को अपने छहों बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही थी कि अगर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया तो क्या करेंगे, कैसे बच्चों को पालेंगे, और फूलचंद को अपने वंश को खत्म होने का डर सताता। उसके बाद उसकी मेहनत से जोड़ी धन सम्पत्ति सब सरकार छीन लेगी या उस पर अवैध कब्जा हो जाएगा। उसके नाते रिश्तेदार तो आँख गड़ाए बैठे हैं, उसकी जमीन जायदाद पर।भूख से तड़पता था तो कोई दो रोटी के लिए नहीं पूछता था, पानी पीकर कितनी रातें बिताई हैं उसने।तब कोई रिश्तेदार नहीं था उसका और अब जब अपनी मेहनत से धन सम्पत्ति जोड़ने में लगा है तो रिश्तेदार पैदा हो गए हैं।
शांति देवी अपने इस दकियानूसी समाज से बगावत करने को तैयार थी और अपने पति से कहती," क्या बिगाड़ लेगा यह समाज हमारा। जिसने मेरी हर तकलीफ़ में साथ दिया आज उसकी खुशी के लिए, मैं जरूर उसको बाबाधाम लेकर जाऊंगी।भोले बाबा ने सपने में आकर बुलाया है मुझे और उसे। यह मेरी भी परिक्षा की घड़ी है।बस भोले बाबा उसकी सूनी गोद भर दें। मैं पूरी दुनिया से लड़ जाऊं, बस ...बउआ के बाबुजी आप मेरा साथ दीजिए। "
पत्नी को इस तरह मनुहार करते देख एक युक्ति सूझी। यहां मोहल्ले में किसी को कानों कान खबर मत होने दो कि बुद्धनी को तुम बाबा धाम लेकर जाना चाहती हो। मैं तुमको सुलतान गंज तक पहुंचा दूंगा और फूलचंद बुद्धनी को लेकर वहां आ जाएगा।किसी को तुम्हारी आगे की योजना के बारे में भनक भी नहीं लगनी चाहिए। हम दोनों वापिस आ जाएंगे और तुम दोनों बाबा धाम चले जाना। "
"वैसे आप भी साथ होते तो अच्छा होता जी, पर वहां करीब हफ्ता भर तो लग ही जाएगा हमको, पूजा पाठ अनुष्ठान और जाप में। "
"अभी तुम जिस काम से जा रही हो , पहले वो पूरा कर आओ। फिर हम दोनों जाएंगे , एक साथ भोले बाबा को जल चढ़ाने। बच्चों को दोनों एक साथ छोड़ कर तो नहीं जा सकते, माना बच्चे बड़े हो रहे हैं उन्हें अब हमारी इतनी जरुरत नहीं है फिर भी बच्चों को इतने दिनों के लिए छोड़ना सही नहीं।"
भोले बाबा ने बुद्धनी की पुकार सुन ली। उसके धर्म परिवर्तन करने से भगवान के आशिर्वाद पर कोई फर्क नहीं पड़ा।ये तो हम मनुष्य ही धर्म विभाजन करते हैं। उनकी दृष्टि में तो सब एक हैं।वैसे भी सब आस्था और विश्वास का खेल है। विश्वास करो तो पत्थर में भगवान नजर आएंगे वरना साक्षत भगवान भी पत्थर ही दिखेंगे।
नौ महीने बाद ही बुद्धनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। भोले बाबा के आशिर्वाद से मिले इस पुत्र का नाम शांति देवी ने ही भोला सुझाया था ,जो बुद्धनी और फूलचंद दोनों को अत्यंत पसंद आया। शांति ने मन्नत मांगी थी कि अगर बुद्धनी की संतान हुई तो उसका मूंडन देवघर यानी बाबा धाम में होगा। समय बीतता गया और जब भोला पांचवें वर्ष में प्रवेश किया तो शांति ने बुद्धनी को अपनी मन्नत पूरी करने की बात याद दिलाई।
क्या बुद्धनी भोला का मुंडन बाबा धाम में करवाएगी ... जानने के लिए जुड़े रहिए कहानी के अगले भाग से।
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कविता झा'काव्य''
( कहानी से जुड़े रहने के लिए हृदय तल से आभार)
# लेखनी
#कहानीकार प्रतियोगिता
Babita patel
03-Sep-2023 09:48 AM
Amazing part
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